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चिकित्सा विज्ञान के विकास से पहले, महिलाएँ अपने समाज, परंपरा और ज्ञान के अनुसार गर्भधारण रोकने के लिए विभिन्न तरीके अपनाती थीं। इन उपायों में प्राकृतिक सामग्री, पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक प्रथाएँ शामिल हैं। हालाँकि, इनमें से कई उपाय आधुनिक विज्ञान के अनुसार प्रभावी या सुरक्षित नहीं माने जाते हैं।
(1) जड़ी-बूटियों का प्रयोग प्राचीन काल में, महिलाएँ गर्भधारण रोकने के लिए जड़ी-बूटियों का प्रयोग करती थीं। कुछ विशेष जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता था:
- नीम: नीम के पत्तों या तेल का उपयोग गर्भनिरोधक के रूप में किया जाता था।
- जंगली गाजर के बीज: इसे ‘क्वीन ऐनीज़ लेस’ भी कहा जाता है। महिलाएं इन बीजों का सेवन करके गर्भधारण रोकने की कोशिश करती थीं।
- अजवाइन और गुड़: प्राचीन आयुर्वेदिक उपचारों में, अजवाइन और गुड़ के मिश्रण का उपयोग गर्भनिरोधक के रूप में किया जाता था।
- संभोग के समय का ध्यान रखें: प्राचीन समाजों में, यह माना जाता था कि मासिक धर्म चक्र के कुछ खास दिनों में संभोग करने से गर्भधारण नहीं होता।
- संभोग के तुरंत बाद सफ़ाई: महिलाएँ गर्भाशय की सफ़ाई के लिए प्राकृतिक जल और औषधियों का उपयोग करती थीं।
- कछुए का खोल या मछली की खाल: इनका उपयोग गर्भ में प्रवेश को रोकने के लिए किया जाता था।
- सूती या कपड़े के आवरण: इन्हें औषधीय तेल में भिगोकर इस्तेमाल किया जाता था।
- तीखे मसालों का अत्यधिक सेवन: जैसे दालचीनी, हल्दी और अदरक, जिनके बारे में माना जाता था कि वे गर्भाशय को सक्रिय करते हैं।
- भारी शारीरिक श्रम: गर्भधारण से बचने के लिए महिलाएं भारी काम करती थीं।
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