लड़कियों की नाक बाईं तरफ क्यों छिदी जाती है? जानिए इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व…

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नाक छिदवाने के फायदे: हमारी भारतीय संस्कृति में परंपराएँ और रीति-रिवाज केवल सुंदरता के लिए ही नहीं होते, बल्कि इनके पीछे वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी कारण भी होते हैं। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण परंपरा है नाक और कान छिदवाने की प्रथा।

प्राचीन काल से ही पुरुष और महिलाएँ अपने कान छिदवाते रहे हैं, लेकिन महिलाओं के लिए नाक छिदवाना भी आम बात थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह परंपरा केवल सुंदरता तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं।

नाक छिदवाने का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

हमारे पूर्वजों ने नाक और कान छिदवाना अनिवार्य कर दिया था। कुछ समुदायों में, जिन लड़कियों की नाक नहीं छिदी होती थी, उनका विवाह वर्जित था, जो इस प्रथा के सामाजिक महत्व को दर्शाता है।

विवाहित महिलाओं के लिए नाक छिदवाना शुभ माना जाता है और इसे सोलह श्रृंगारों में से एक माना जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, नाक छिदवाना देवी पार्वती का सम्मान करने का एक तरीका है। लेकिन समय के साथ, इस परंपरा का सख्ती से पालन कम हो गया है और यह एक पसंद का विषय बन गया है।

हाल ही में, नाक में नथ पहनना एक फैशन ट्रेंड बन गया है और कुछ लोगों ने फिल्मों से प्रेरित होकर दोनों तरफ नथ पहनने की प्रथा अपना ली है।

वैज्ञानिक आधार: स्वास्थ्य में नाक की भूमिका

नाक छिदवाने की परंपरा केवल सुंदरता के साथ-साथ इसके पीछे गहरे वैज्ञानिक कारण भी हैं। वेदों और शास्त्रों के अनुसार, नाक छिदवाने से महिलाओं को कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। इस प्रथा के कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:

मासिक धर्म से राहत: ऐसा कहा जाता है कि नाक छिदवाने से मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द को कम किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि नाक के बाईं ओर छिदवाने से शरीर के तंत्रिका तंत्र में कुछ बिंदु उत्तेजित होते हैं, जिससे दर्द की तीव्रता कम हो जाती है।

प्रसव में आसानी: चिकित्सा अनुसंधान से पता चलता है कि नाक छिदवाने से प्रसव के दौरान दर्द कम होता है और प्रसव प्रक्रिया आसान हो जाती है। यह गर्भवती महिलाओं के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से लाभकारी है।

माइग्रेन से राहत: कई अध्ययनों से पता चला है कि नाक छिदवाने से माइग्रेन जैसे सिरदर्द की समस्या से राहत मिल सकती है। यह शरीर के दबाव को नियंत्रित करने वाली नसों को प्रभावित करता है।

रक्तचाप नियंत्रण: कुछ आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार, नाक के बाईं ओर छिदवाने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है, जिससे हृदय संबंधी समस्याओं से राहत मिल सकती है।

नाक बाईं ओर क्यों छिदी जाती है?

नाक के बाएं हिस्से का विशेष महत्व है। आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा समझ के अनुसार, नाक के बाईं ओर यह महिला प्रजनन अंगों से संबंधित तंत्रिका तंत्र के बिंदुओं से जुड़ा है।

इस क्षेत्र में छेद करने से शरीर का तनाव और दर्द कम हो सकता है। ऐसा कहा जाता है कि यह प्रसव के दौरान दर्द को कम करता है। इसके अलावा, आयुर्वेद में कहा गया है कि यह छेद शरीर के ऊर्जा संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।

स्वास्थ्य के साथ-साथ सौंदर्य: इसमें कोई संदेह नहीं है कि नाक की नथ पहनने से महिला की सुंदरता बढ़ती है। लेकिन यह केवल सजावट तक ही सीमित नहीं है। यह महिलाओं के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह अभ्यास बचपन से लेकर वयस्कता तक किसी भी उम्र में किया जा सकता है और इसका शरीर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है।

आधुनिक परिप्रेक्ष्य: आज के आधुनिक युग में नाक छिदवाना सिर्फ़ एक परंपरा नहीं, बल्कि फैशन का हिस्सा बन गया है। लेकिन जब हम इस परंपरा के पीछे छिपे वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी कारणों को समझते हैं, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा अनुसंधान इस प्रथा का समर्थन करते हैं, जो हमारे पूर्वजों के गहन ज्ञान को दर्शाता है।

नाक छिदवाने की परंपरा भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। यह न केवल सौंदर्य-वर्धक आभूषण है, बल्कि महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए एक वैज्ञानिक प्रथा भी है।

नाक के बाईं ओर छेद करने से मासिक धर्म के दर्द, प्रसव पीड़ा, माइग्रेन और रक्तचाप जैसी समस्याओं से राहत मिलती है। यह परंपरा हमारे पूर्वजों के ज्ञान और संस्कृति के मेल को दर्शाती है, जो आधुनिक समय में भी प्रासंगिक है।

नोट: इस लेख में दी गई सभी जानकारी विभिन्न स्रोतों जैसे – पंचांग/पद्य/धार्मिक मान्यताओं/ज्योतिषियों/शास्त्रों से संकलित करके आप तक पहुँचाई गई है। हमारा उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है। हमारी वेबसाइट इसकी पुष्टि नहीं करती है। इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।

अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी केवल शैक्षिक और सामान्य जानकारी के उद्देश्यों के लिए है। यह किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं है। आपकी व्यक्तिगत स्वास्थ्य स्थितियाँ और ज़रूरतें अलग-अलग हो सकती हैं, इसलिए कोई भी निर्णय लेने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेना ज़रूरी है।

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