हालांकि सर्दियों का मौसम ठंडी हवाओं और कम तापमान का एहसास लेकर आता है, लेकिन यह तंत्रिका संबंधी बीमारियों से पीड़ित मरीजों के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय साबित हो सकता है।
सर्दी का तंत्रिका तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जिससे मल्टीपल स्क्लेरोसिस (एमएस), पार्किंसंस, माइग्रेन और न्यूरोपैथी जैसी बीमारियों के लक्षण और बिगड़ सकते हैं।
इन बीमारियों से पीड़ित मरीजों और उनके देखभाल करने वालों के लिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि ठंड के इन प्रभावों से कैसे निपटा जाए।
फोर्टिस अस्पताल (फरीदाबाद) में न्यूरोलॉजी के निदेशक डॉ. विनीत बंगा बताते हैं कि ठंड का मौसम मल्टीपल स्क्लेरोसिस के मरीजों की मांसपेशियों में अकड़न और जकड़न बढ़ा सकता है, जिससे चलना और दैनिक कार्य करना मुश्किल हो जाता है।
ठंड रक्त परिसंचरण को भी धीमा कर देती है, जिससे सुन्नता और झुनझुनी जैसे लक्षण और भी बदतर हो सकते हैं।
पार्किंसंस रोग और सर्दी
पार्किंसंस रोग के मरीजों में, ठंड के कारण कंपन, अकड़न और धीमी गति (ब्रैडीकिनेसिया) जैसे मोटर लक्षण बढ़ जाते हैं। ठंड का मौसम शरीर की तापमान नियंत्रण क्षमता को भी प्रभावित करता है, जिससे बेचैनी बढ़ जाती है।
माइग्रेन से पीड़ित लोगों के लिए जोखिम बढ़ सकता है
माइग्रेन से पीड़ित लोगों के लिए, सर्दियों के मौसम में सिरदर्द और भी बदतर हो सकता है। तापमान में अचानक बदलाव, ठंडी हवा और हीटर के इस्तेमाल से मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं में परिवर्तन होता है, जिससे माइग्रेन हो सकता है।
पेरिफेरल न्यूरोपैथी और सर्दी:
हाथों और पैरों की नसों को प्रभावित करने वाली यह समस्या ठंड में और भी बदतर हो जाती है। ठंडा तापमान रक्त प्रवाह को धीमा कर देता है, जिससे दर्द, सुन्नता और संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
ठंड का मौसम न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। धूप की कमी मौसमी भावात्मक विकार (SAD) की समस्या को बढ़ा सकती है, जो एक प्रकार का अवसाद है।
निवारक उपाय:
मरीजों को ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े पहनने, कमरे को गर्म रखने और नियमित व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। साथ ही, अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार अपनी दवाओं और आहार में बदलाव करें।
अस्वीकरण: दी गई जानकारी इस लेख में दी गई जानकारी केवल शैक्षिक और सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं है। आपकी व्यक्तिगत स्वास्थ्य स्थितियाँ और ज़रूरतें अलग-अलग हो सकती हैं, इसलिए कोई भी निर्णय लेने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेना ज़रूरी है।
