अगर आप अपने दिन की शुरुआत घर के मंदिर में पूजा के लिए धूप जलाकर करते हैं, तो आपको समय रहते अपनी यह आदत बदल लेनी चाहिए। जी हाँ, ऐसा करके आप अनजाने में अपनी सेहत को बहुत नुकसान पहुँचा रहे हैं।
अगर आपको यह सुनकर हैरानी हो रही है, तो बता दें कि यहाँ हम पूजा की नहीं, बल्कि पूजा के लिए जलाई जाने वाली धूप और अगरबत्ती की बात कर रहे हैं।
-अगरबत्ती जलाने के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव
फेफड़ों पर बुरा प्रभाव
अगरबत्ती के धुएँ में मौजूद रसायन फेफड़ों को नुकसान पहुँचा सकते हैं। कई अध्ययनों से पता चलता है कि अगरबत्ती और धूपबत्ती में इस्तेमाल होने वाले पॉलीएरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) फेफड़ों के लिए हानिकारक हैं। इनसे निकलने वाला धुआँ शरीर की कोशिकाओं पर बुरा प्रभाव डालता है और सिगरेट के धुएँ से भी ज़्यादा ज़हरीला होता है। आपको बता दें कि अगरबत्ती के धुएँ में मौजूद रसायन फेफड़ों की परत में संक्रमण पैदा कर सकते हैं। इसके धुएँ के लगातार संपर्क में रहने से फेफड़ों की कोशिकाओं में सूजन हो सकती है।
त्वचा की एलर्जी
धूप और धूपबत्ती का लंबे समय तक उपयोग आँखों और त्वचा की एलर्जी का कारण बन सकता है। इन वस्तुओं को जलाने से निकलने वाला धुआँ आँखों में जलन पैदा करता है। संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को इस धुएँ के संपर्क में आने से त्वचा में जलन हो सकती है।
मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है
सुगंधित धूपबत्ती और धूपबत्ती से निकलने वाले रासायनिक धुएँ का व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इन पदार्थों का लंबे समय तक उपयोग सिरदर्द, एकाग्रता में कमी, मनोभ्रंश और अल्जाइमर के जोखिम को भी बढ़ा सकता है।
सांस लेने की क्षमता पर बुरा असर
सीपीसीबी पैनल के अनुसार, इसका धुआँ श्वसन तंत्र को भी प्रभावित करता है। कई अध्ययनों के अनुसार, अगरबत्ती के धुएँ के लगातार संपर्क में रहने से सांस लेने की क्षमता 30 प्रतिशत तक प्रभावित हो सकती है। आपको बता दें कि अगरबत्ती जलाने से हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड निकलती है। इससे फेफड़ों में सूजन और सांस लेने से जुड़ी कई समस्याएं हो सकती हैं। अगरबत्ती के धुएँ में मौजूद कण, गैसें और कार्बनिक यौगिक श्वसन तंत्र को कमजोर कर देते हैं। जब ये श्वसन पथ के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं, तो वायुमार्गों में जमा हो जाते हैं।
कैंसर का खतरा
अगरबत्ती और धूपबत्ती से निकलने वाला धुआँ, खासकर धूपबत्ती से निकलने वाले धुएँ का फेफड़ों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस धुएँ के लंबे समय तक संपर्क में रहने से व्यक्ति को अस्थमा, सीओपीडी, फेफड़ों का कैंसर, ब्रोन्कियल कैंसर, मनोभ्रंश, सिरदर्द, माइग्रेन आदि जैसी समस्याओं का खतरा भी बढ़ सकता है।
अस्वीकरण: इस लेख में दी गई जानकारी केवल शैक्षिक और सामान्य जानकारी के उद्देश्यों के लिए है। यह किसी भी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं है। आपकी व्यक्तिगत स्वास्थ्य स्थितियाँ और ज़रूरतें अलग-अलग हो सकती हैं, इसलिए कोई भी निर्णय लेने से पहले विशेषज्ञ की सलाह लेना ज़रूरी है।
